मीडिया को जारी बयान में केंद्र सरकार ने 2025-26 के लिए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है। प्रमुख खाद्यान्न धान (सामान्य और ए ग्रेड) की एमएसपी में मात्र 03 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है जो ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है। जहां सामान्य धान की कीमत 2,300 से सिर्फ 2,369 हुई है और ए ग्रेड धान की कीमत 2,320 से 2,389 हुई है, वहीं दूसरी ओर कुछ फसलों की एमएसपी में 400 से 800 रुपये तक की वृद्धि की गई है, जो अधिकतर वे फसलें है जो हरियाणा और पंजाब जैसे अन्नदाता राज्यों में होती ही नहीं हैं। जबकि देशभर में मजदूरी की दरों और कृषि लागत में औसतन 20 से 25 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है, ऐसे में केवल 03 प्रतिशत एमएसपी बढ़ाना किसानों के साथ अन्याय है। खासकर उन राज्यों के किसानों के लिए जो धान जैसी प्रमुख फसलों पर निर्भर हैं।
सांसद कुमारी सैलजा ने सरकार से पूछा है कि धान जैसी प्रमुख फसल की एमएसपी में इतनी नगण्य बढ़ोतरी क्यों की गई है? क्या सरकार यह मानती है कि महंगाई, बढ़ती खाद-बीज की कीमतें, ट्रैक्टर/डीजल आदि के खर्च और श्रमिक मजदूरी के अनुपात में एमएसपी वृद्धि नाकाफी है? क्या यह सच नहीं है कि सरकार एमएसपी बढ़ोतरी की झूठी वाहवाही सिर्फ उन फसलों के नाम पर लूट रही है, जो अधिकतर राज्यों में बोई ही नहीं जाती? सांसद ने कहा कि न्यायसंगत और क्षेत्रीय संतुलन के आधार पर एमएसपी बढ़ोतरी की आवश्यकता है। धान उत्पादक किसानों को निराश करने वाली यह नीति तुरंत वापस ली जाए और पुन: विचार किया जाए। सांसद ने कहा कि कुछ किसान-मजदूर भूमि ठेके पर लेकर खेती करते हैं, बढ़ती महंगाई और बढ़ती मजदूरी दरों के खेत घाटे का सौदा बनती जा रही है, इनका ख्याल रखते हुए सरकार को विचार करना चाहिए था।
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